खोया बचपन डिजिटल युग में बचपन की यादें

कविता

खोया-खोया सा सारा जहाँ है
बातें अब पहले सा कहाँ है,
सुना पड़ा सब गली मोहल्ला है,
हर किसी की पसंद, मोबाइल पहला है।

गिल्ली-डंडे, बैट-बॉल, किताबें,
पड़ी सब सुनसान हैं,
कल तक सबकी थी ये पहली पसंद,
आज हर कोई इससे अनजान है।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

कहाँ गए वो दिन सुहाने,
जहाँ बच्चे हंसते, खेलते दीवाने,
धरती थी खेल का मैदान,
आकाश में उड़ते सपनों के जहान।

अब न खेल में है वो मज़ा,
न ही मिलते यारों के चेहरे पर खुशी का धरा,
स्क्रीन की दुनिया में खो गए हैं सब,
जीवन का असली रंग कहीं हो गया ग़ायब।

इन्हें भी पढ़ें :-

दोस्ती और खेल: मोहन की प्रेरणादायक कहानी

नवरात्रि 2024: माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि और शुभ रंग का अद्भुत महत्व

कविता का विश्लेषण: डिजिटल युग में बचपन का बदलता चेहरा

इस कविता में बचपन की मासूमियत और खेलों की अहमियत को उजागर किया गया है। यह हमें याद दिलाती है कि कुछ साल पहले तक गली-मोहल्लों में बच्चे गिल्ली-डंडा, बैट-बॉल जैसे खेल खेला करते थे। लेकिन आज डिजिटल युग में इन खेलों की जगह मोबाइल फोन, वीडियो गेम और सोशल मीडिया ने ले ली है।

बचपन और खेलों की महत्ता

बचपन के खेल न केवल मनोरंजन के साधन होते हैं, बल्कि बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए भी आवश्यक होते हैं। ये खेल बच्चों में सामूहिकता, धैर्य, और कठिन परिस्थितियों से निपटने की कला सिखाते हैं।

आपकी राय

आपको यह कविता कैसी लगी? क्या आप भी इस बात से सहमत हैं कि डिजिटल युग ने बचपन की खुशियों को सीमित कर दिया है? आपकी क्या राय है? क्या आप भी अपने बचपन के दिनों को याद करते हैं जब खेलों का आनंद और दोस्तों की हंसी जीवन का हिस्सा हुआ करती थी? अपनी राय नीचे कमेंट में साझा करें।

By PARAS

Paras Nath is a content creator at Buzzera.in, where he writes on news, entertainment, cricket, automobiles, and stock market updates. He strives to deliver content that is both engaging and informative for his readers.

13 thoughts on “खोया बचपन: डिजिटल युग में बचपन की यादें”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

           

© Buzzera.in All Rights Reserved | About Us | Contact Us | Privacy Policy | Disclaimer   |