गोदी मीडिया बनाम स्वतंत्र पत्रकारिता : जनता किस पर भरोसा करे?

बीते कुछ वर्षों में “गोदी मीडिया” शब्द भारतीय राजनीति और मीडिया जगत में सबसे लोकप्रिय और चर्चित विषय बन चूका है । गोदी मीडिया शब्द किसी पत्रकार या चैनल के लिए नहीं है बल्कि एक ऐसी मीडिया शैली को दर्शाता है जहाँ बड़े-बड़े न्यूज़ चैनल सरकार की नीतियों और फैसलों पर कठिन सवाल पूछने के बजाय उनका गुणगान करती हैं उनकी सिर्फ तारीफें करते दिखेंगे। आम नागरिक कहते हैं ऐसे चैनल सत्ता की गोद में बैठकर काम करते हैं कभी भी लोगों की समस्याओं को मीडिया जनता के सामने नहीं लाती, इसलिए इन्हें “गोदी मीडिया” कहते हैं।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पूरा मीडिया ऐसा ही है ? क्या शब्द उचित है ? आखिर जनता इस शब्द का इस्तेमाल क्यों कर रही है ? आइये इसको विस्तार से समझते हैं ?

इन्हें भी पढ़ें :  भारतीय रुपया 90.21 रु. प्रति डॉलर पर पहुंचा , शेयर मार्केट में आई गिरावट

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

हमें मीडिया की जरूरत क्यों पड़ी ? इसका काम क्या है ?

आपको बता दें कि मीडिया को लोकतांत्रिक व्यवस्था में चौथा स्तम्भ माना जाता है। किसी भी मीडिया का काम होता है सरकार से सवाल पूछना, देश की समस्याओं को जनता के सामने उजागर करना, जनता की आवाज़ बनना, गलतियों को उजागर करना तथा तथ्य और सच्चाई का पर्दाफाश करना किसी भी मीडिया का काम होता है।

गोदी मीडिया शब्द आजकल ट्रेंड में

पिछले कुछ सालों में कई बड़े न्यूज़ चैनलों में एक समान न्यूज़ पैटर्न देखने को मिला, जो इस प्रकार है :

  • सरकार से आसान सवाल-जवाब करना : कई न्यूज़ चैनलों ने महंगाई, बेरोजगारी, मेडिकल, शिक्षा, गरीब किसानों की समस्या इन सब मुद्दों पर न के बराबर चर्चा का होना। इसके बजाय राजनितिक बयानबाजी, विपक्ष पार्टी की आलोचना, धार्मिक विवाद, स्टूडियो डिबेट और चीखने-चिल्लाने पर जोर देना।
  • विपक्ष पार्टी की आलोचना करना : न्यूज़ चैनलों पर अक्सर कई डिबेट शो ऐसे दिखाए जाते हैं जिनका मकसद केवल और केवल विपक्ष पार्टी को नीचा और गलत साबित करना होता है।
  • न्यूज़रूम की डिबेट द्वारा असली मुद्दों को दबा देना : आजकल ग्राउंड कम और स्टूडियो में बहस ज्यादा दिखाई देती है जो जनता की असल समस्याओं को दबा देती है।
  • सरकार के पक्ष में नैरेटिव देना : जो नीतियाँ और फैसले विवादों से घिरा रहता है उन सवालों का पर्दाफाश करने के बजाय मीडिया उन्हें सकारात्मक तरीके से दिखाती है जिससे सच कभी सामने नहीं आ पाता।

इन सभी कारणों से जनता इस तरह से रिपोर्टिंग करने वाली न्यूज़ स्टाइल को “गोदी मीडिया” कहने लगी।

इन्हें भी पढ़ें : 44 मिलियन व्यूज के बावजूद गुरु रंधावा का गाना “AZUL” आखिर विवादों में क्यों घिरा ?

क्या पूरा मीडिया ‘गोदी मीडिया’ है ?

ऐसा नहीं है कि सारा का सारा मीडिया गोदी मीडिया है आज भी कुछ पत्रकार अपने बेबाक पत्रकारिता के लिए जाने जाते हैं वे अपनी बातों को सरकार के समक्ष खुलकर करती है सरकार से मुश्किल सवाल करती है और जनता की दबे हुए आवाज़ को उठाते हैं। विवादित विषयों पर निष्पक्ष विश्लेष्ण देते हैं। लेकिन दिक्कत यहाँ आती है कि इन पत्रकारों को जो TRP मिलनी चाहिए वो मिल नहीं पाती है, फन्डिंग की कमी होती है, ट्रोलिंग, ऊपर से दबाव भी इन पर बना रहता है।

ऐसे बढ़ा गोदी मीडिया का ट्रेंड

कई न्यूज़ चैनल को मोटी कमाई सरकारी विज्ञापनों से आती है ऐसे में कई न्यूज़ चैनल सरकार की आलोचना करने से कतराते हैं क्योंकि ऐसा करने से उनको नुकसान सहना पड़ सकता है। कई न्यूज़ चैनल के आर्थिक संबंध उद्योगपतियों से होते हैं इससे भी मीडिया प्रभावित होती है और जो मीडिया आवाज़ उठाता है उन्हें ‘एंटी नेशनल’ या देशद्रोही जैसे शब्द घेर लेते हैं। स्टूडियो और डिबेट वाली लड़ाई को मीडिया ज्यादा कवर करती है क्योंकि इनसे उनको अच्छी TRP मिलती है।

जनता की मीडिया से उम्मीद

आज आम जनता का हर तरफ इतना ज्यादा शोषण हो रहा है जिससे चलते लोग चीख-चीखकर न्याय की गुहार लगा रहे हैं। लेकिन बदले में इन्हें मिलता क्या है ? न्यूज़ खोलो तो बस हिन्दू-मुस्लिम, भारत-पाकिस्तान, यह सब चलता रहता है असली मुद्दे तो गायब होते हैं। लेकिन इस सोशल मीडिया के जमाने में लोग यूट्यूब पत्रकारिता, जो ग्राउंड रिपोर्ट और सही खबरें पहुँचाते हैं उन पर भरोसा कर रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले बड़े-बड़े न्यूज़ चैनलों ने अभिनेता धर्मेंद्र को जीते जी श्रद्धान्जली दे दिए थे जिसके बाद उन मीडियाकर्मियों ने खूब तंज कसा और अब जनता का भरोसा उठ सा गया है।

गरीब किसान..

हालांकि गोदी मीडिया कोई चिन्हित मीडिया हाउस या पत्रकार नहीं है बल्कि आज का ट्रेंड है जो ये बताता है कि न्यूज़ मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सत्ता की ओर झुका हुआ है लेकिन कुछ मीडिया और पत्रकार ऐसे हैं जो जान जोखिम में डालकर सच्ची पत्रकारिता कर रहे हैं। देश में लोकतांत्रिक तभी संभव है जब मीडिया निर्भीक, स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर जनता की आवाज़ उठाएगा न कि सत्ता की गोद में बैठकर।

By PARAS

Paras Nath is a content creator at Buzzera.in, where he writes on news, entertainment, cricket, automobiles, and stock market updates. He strives to deliver content that is both engaging and informative for his readers.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

           

© Buzzera.in All Rights Reserved | About Us | Contact Us | Privacy Policy | Disclaimer   |